Wednesday, 24 September 2014

प्रेम

प्रेम की कोई
उम्र नहीं होती लेकिन
जो तुम्हारे प्रेम का बीज
मैंने बोया था कभी
वो तो उगा ही नहीं

आज उम्र के
इस पड़ाव पर
कौन से प्रेम की
दुहाई दे रहे हो
जो तुमने कभी
निभाया ही नहीं

किस हक से आना
चाहते हो दिल में
जिस प्रेम की हत्या
तुम कर चुके हो
उसकी सजा मैंने काटी है।

No comments:

Post a Comment